इसरो करेगा इस वर्ष आदित्य L1 सौर मिशन लांच

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अभी एक ऐसी अंतरिक्ष परियोजना पर काम कर रहा है जो सूर्य का अध्ययन करेगी। इस प्रोजेक्ट का नाम आदित्य एल1 है। आदित्य सूर्य का ही दूसरा नाम है, और इसका उद्देश्य सूर्य के अध्ययन ही है। हाल ही में इसरो के अध्यक्ष द्वारा बताया गया कि अंतरिक्ष यान को इस साल जून या जुलाई में लॉन्च किया जाना तय किया गया है। यह आदित्य अंतरिक्ष यान सौर चुंबकीय तूफानों और पृथ्वी पर सौर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन करेगा। इसे समझ कर बहुत से सवालों के जवाब जानने में काफी मदद मिलेगी।

आदित्य L1 अन्तरिक्ष यान विशेष रूप से निम्नलिखित अध्ययन करेगा:

1.सौर पवनें: ये पवनें सूर्य के प्लाज्मा के विस्तार के कारण उत्पन्न होती हैं

2.सूर्य का फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर

3.सूर्य का कोरोना

4.सूर्य के ऊर्जावान कण

5.कोरोना हीटिंग का अध्ययन

 

आदित्य-एल1 मिशन के प्रमुख उद्देश्य

सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) गतिकी का अध्ययन।

क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का अध्ययन

सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले यथावस्थित कण और प्लाज्मा वातावरण का प्रेक्षण

सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र।

कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व।

सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति।

उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जो अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं।

कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप।

हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता।

क्या है कोरोनल हीटिंग?

सूर्य के कोरोना का तापमान एक लाख केल्विन क्यों है, लेकिन उसके कोर का तापमान केवल हजारों केल्विन है? इसे आम तौर पर कोरोना हीटिंग समस्या (corona heating problem) कहा जाता है। इसका कारण आज भी ज्ञात नहीं है। आदित्य एल1 भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को कोरोनल हीटिंग समस्या का समाधान खोजने में सहायक होगा।

कोरोनल मैग्नेटोमेट्री

सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना कहलाती है। इसमें आयनित प्लाज्मा होता है, जहाँ आयन अपने चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र ले जाते हैं। यह कोरोना को चुंबकीय बनाता है। सूर्य के कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन को ही कोरोनल मैग्नेटोमेट्री (coronal magnetometry) कहा जाता है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान

इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है।इसका मुख्यालय बंगलौर, कर्नाटक में है। इस संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्य करते हैं। मुख्य रूप से यह संस्थान भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध कराने का कार्य करता है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।आज इसरो के प्रयासों से हम वैश्विक स्तर पर अन्तरिक्ष विज्ञान में अग्रणी देश के रूप में उभर कर आए हैं।

 


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