अमरीकी वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फ्यूजन की सफलता की घोषणा की

संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पहली बार न्यूक्लियर फ्यूजन  (परमाणु संलयन) प्रतिक्रिया से ऊर्जा में शुद्ध लाभ हासिल किया है, जिसे दशकों पुराने प्रयास में एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है, यह एक ऐसी तकनीक में महारत हासिल करने के लिए है जिसे ऊर्जा का सबसे भरोसेमंद स्रोत माना जाता है। कई दशकों से वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन) पर आधारित रिएक्टरों को लेकर खूब प्रयोग किए हैं। लेकिन अब तक कोई अच्छा व्यावहारिक मॉडल विकसित नहीं हो सका था।

अब पहली बार अमेरिका में रिसर्चरों ने इस मामले में बड़ी सफलता हासिल की है। अनुमान लगाया गया है कि इस प्रक्रिया के द्वारा साफ, सुरक्षित और इतनी प्रचुर मात्रा में ऊर्जा बनेगी जिससे इंसानों की हर तरह के जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ही खत्म हो जाएगी। जीवाश्म ईंधनों को जलाना हमारी पृथ्वी पर जलवायु संकट को बढ़ाने की बड़ी वजह मानी जाती है। 

अमरीकी वैज्ञानिकों ने क्या सफलता हासिल की है?

कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेट्री में एक ऐसा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर बनाया गया जिसमें "नेट एनर्जी गेन" होती है। लॉरेंस लिवरमोर लैब के रिसर्चरों ने इसके लिए विशाल नेशनल इग्निशन फेसिलिटी का इस्तेमाल किया, जो तीन फुटबॉल के मैदानों के बराबर आकार की है। इसमें 192 हाई पॉवर लेजर लगाए गए जो कि हाइड्रोजन से भरे एक छोटे से सिलिंडर पर गिराये गए थे। इस प्रयोग में रिएक्टर को एक्टिवेट करने में 2.1 मेगाजूल ऊर्जा खर्च करने से 2.5 मेगाजूल ऊर्जा पैदा हुई जो कि लागत का 120 फीसदी है। ऐसे नतीजों से उस सिद्धांत की भी पुष्टि होती है जो दशकों पहले फ्यूजन रिसर्चरों ने दिया था।

फ्यूजन और फिशन के अंतर को समझें

दुनिया भर के परमाणु संयंत्रों में फिशन यानि नाभिकीय विखंडन कराया जाता है। जिसके अंतर्गत एक भारी परमाणु के केंद्र को तोड़ कर उससे ऊर्जा बनाई जाती है। परमाणु विखंडन एक प्रतिक्रिया है जिसमें एक परमाणु का नाभिक दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों में विभाजित हो जाता है।  विखंडन प्रक्रिया अक्सर गामा फोटॉनों का उत्पादन करती है, और रेडियोधर्मी क्षय के ऊर्जावान मानकों द्वारा भी बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा जारी करती है।

जब न्यूट्रॉन को नाभिक के विभाजन द्वारा उत्सर्जित किया जाता है, तो वे आस-पास के अन्य नाभिक के साथ प्रतिक्रिया करके अन्य संलयन पैदा करने में सक्षम होते हैं। एक बार जब न्यूट्रॉन अन्य मिशनों का कारण बनते हैं, तो उनसे जो न्यूट्रॉन निकलेंगे, वे और भी अधिक मिशन उत्पन्न करेंगे, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसे एक दूसरे के एक छोटे से हिस्से में और एक चेन रिएक्शन के रूप में जाना जाता है। जिस नाभिक ने विखंडन किया है, वह कोयले के ब्लॉक को जलाकर या समान द्रव्यमान के डायनामाइट के ब्लॉक को विस्फोट करके प्राप्त की गई ऊर्जा की तुलना में एक लाख गुना अधिक है।

वहीं दूसरी ओर फ्यूजन यानि नाभिकीय संलयन में दो हल्के हाइड्रोजन परमाणुओं को जोड़कर एक भारी हीलियम परमाणु बनाया जाता है, जिस दौरान बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है। ये प्रक्रिया लगभग नाभिकीय विखंडन के विपरीत है। इसके अंतर्गत दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक की रचना करते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं।

तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण है। आकाश के तारों में प्राकृतिक रूप से यही प्रक्रिया चल रही होती है। उदाहरण के तौर पर, हमारे सौर मंडल के केंद्र में मौजूद तारे सूर्य की असीम ऊर्जा का भी यही रहस्य है। हमें धरती पर फ्यूजन रिएक्टर को चलाने के लिए हाइड्रोजन को बहुत ज्यादा ऊंचे तापमान तक गर्म करना होता है और वो भी खास उपकरणों के अंदर। जिसके अंतर्गत ये पूरी प्रक्रिया पूर्ण होती है।

फिशन की तुलना में फ्यूजन से क्या फायदे होगें ?

न्यूक्लियर फिशन या नाभिकीय विखंडन के साथ सबसे बड़ी समस्‍या रेडिएशन की है। इसके बाय-प्रोडक्‍ट्स हजारों साल तक रेडियोऐक्टिव रहते हैं। उन्‍हें ठिकाने लगाने के लिए खास इंतजाम करने पड़ते हैं। रिएक्‍टर में हादसे के चलते वातावरण में रेडियोऐक्टिव पदार्थ मिलने का खतरा रहता है। ऐसा ही कुछ 1979 में थ्री माइल आइलैंड और 1986 में चेर्नोबिल में हुआ। दोनों दुर्घटनाएं न्यूक्लियर फिशन रिएक्‍टर में हादसे का नतीजा थीं। वहीं दूसरी ओर न्यूक्लियर फ्यूजन में न्यूक्लियर फिशन से कहीं ज्यादा ऊर्जा पैदा हो सकती है, वह भी घातक रेडियोऐक्टिव बाय-प्रोडक्‍ट्स के बिना।

अभी तक, लैब के भीतर फ्यूजन रिएक्‍शंस ट्रिगर करना बेहद जटिल और खतरों से भरा साबित हुआ है क्योंकि नाभिकों को जोड़ने के लिए अत्यधिक दबाव और तापमान की जरूरत पड़ती है। फ्यूजन रिएक्शन के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा चाहिए होती है क्योंकि यह 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस या उससे ऊंचे तापमान पर होता है। यह खुद से होता रहे, उसके लिए जरूरी है कि जितनी ऊर्जा भीतर जाए, उससे कहीं ज्यादा पैदा हो। एक बार फ्यूजन का कॉमर्शियलाइजेशन हो गया तो हम कार्बन-फ्री बिजली बना सकते हैं।

 धरती और पर्यावरण के लिए अच्छा है फ्यूजन

 लगातार गंभीर होते जलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ फ्यूजन को जल्द से जल्द विकसित करने की जरूरत पर बल देते हैं। इसके सफल होने से अब पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा का रास्ता भी साफ हो गया है। वर्तमान समय में जब धरती का तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है एसे समय में न्यूक्लियर फ्यूजन की ये सफलता वाकई ग्रीन एनर्जी के रूप में आगे का एक कदम है।

विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट 2021 के अनुसार आगामी वर्षों में तेल के उत्पादन और अन्वेषण में 10% निवेश बढ़ने की उम्मीद है वहीं जीवाश्म ईंधन में इस विस्तार की योजना कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) तथा बायोएनर्जी सीसीएस जैसी नई प्रौद्योगिकियों के साथ बनाई गई थी, जिन्हें अभी तक व्यावसायिक सफलता नहीं मिली है। वर्ष 2020 में कोयले से उत्पादित बिजली की वृद्धि, जो अधिकतर चीन द्वारा संचालित है, यह संकेत दे रही है कि कोयले से बिजली उत्पादन महँगा होने के बाद भी इसका महत्त्व बना हुआ है।

हालांकि वर्तमान दुनिया की ऊर्जा जरूरत का करीब 10% न्‍यूक्लियर फिशन से आता है। world-nuclear. org के अनुसार, दुनियाभर में ऐसे करीब 440 रिएक्‍टर्स हैं। 50 से ज्‍यादा देशों में करीब 220 रिसर्च रिएक्‍टर्स भी हैं जो मेडिकल और इंडस्ट्रियल आइसोटोप्‍स तैयार करते हैं। 92 रिएक्‍टर्स के साथ, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर एनर्जी प्रोड्यूसर है।

अब आगे क्या ?

अमेरिका के अलावा विश्व के कुछ और देश फ्यूजन आधारित परमाणु रिएक्टर बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। इसमें 35 देशों के सहयोग से चल रहे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट ITER का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जो फ्रांस में चल रहा है। ITER इस तरीके में डोनट के आकार वाले चैंबर में मथे हुए हाइड्रोजन प्लाज्मा पर मैग्नेटिक कनफाइनमेंट तकनीक आजमाई जा रही है।

 'द फ्यूजन इंडस्ट्री एसोसिएशन' का कहना है कि 2030 तक न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए पावर ग्रिड्स में बिजली सप्लाई संभव हो सकेगी। इस प्रयोग में जितनी ऊर्जा उत्पन्न की गई है वह बहुत कम है जो बस कुछ केटल्स को उबालने के लिए पर्याप्त है। लेकिन यह जो दर्शाता है वह इससे बहुत ज्यादा बड़ा है।

फ्यूजन-संचालित भविष्य का वादा एक कदम और करीब है। लेकिन यह एक वास्तविकता बनने से पहले अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। इस प्रयोग से पता चलता है कि विज्ञान कैसे काम करता है। इससे पहले कि वैज्ञानिक इसे बढ़ाने के बारे में सोच सकें, इसे फिर से कई बार दोहराया जाएगा, सिद्ध किया जाएगा और इससे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा की मात्रा को काफी बढ़ावा दिया जाएगा। इस प्रयोग में अरबों डॉलर खर्च हुए हैं - क्योंकि यह कोई सस्ती प्रक्रिया नहीं है। लेकिन इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत का वादा निश्चित रूप से एक बड़ा प्रोत्साहन होगा।

 


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